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घर… और मकान
News Date:- 2024-05-21
घर… और मकान
AJATSHATRU

लखनऊ,21 May 2024

घरऔर मकान

-दलजीत कौर

 

मेरी सहेली की ससुराल में सब कुछ था पर नीयत कुछ कम थी. सब कुछ होते हुए भी सास-ससुर जी के किराये के लालच के कारण उन्हें दस-बारह साल मकान के दो कमरों में गुज़ारने पड़े. पति अच्छे हैं, इसलिए दो कमरों में भी ज़िंदगी खिलखिलाती रही.

उसकी ममेरी बहन ने कई साल पहले बड़ा-सा मकान खरीदा. वह हर बात में उससे बेहतर दिखना व दिखाना चाहती थी. उसे कार चलाते देख खानदान में कई लड़कियों-बहुओं ने कार चलानी सीखी. कहीं वह आगे न निकल जाए, उससे प्रतिस्पर्धा बनी रही.

कुछ समय पहले उसने एक मकान लिया और उसकी ममेरी बहन आई, उससे बर्दाश्त नहीं हुआ. बोली- “सारी ज़िंदगी तो तुमने डेढ़-पौने दो कमरों में गुज़ार दी. अब बड़े मकान का क्या फ़ायदा.”

हम उसके जीवन का सत्य जानते हैं. उसे बड़े मकान में कभी दो पल का चैन नहीं मिला. पति से बनती नहीं. हर समय का क्लेश अलग.

मेरी सहेली को बुरा लगा पर वह चुप रही. उसके पति चुप नहीं रहते. बोले- “मकान पहले चाहे डेढ़-पौने दो कमरों का था. चाहे अब बड़ा है और आगे और बड़ा होगा पर परमात्मा का शुक्र है कि उसमें घर हमेशा बसा रहा. कलह-क्लेश नहीं हुआ. घर और मकान में यही अंतर है.”

सन्नाटा छा गया. मेरी सहेली भी कम्प्यूटर पर सुंदर अक्षरों में ‘घर‘ शब्द लिखने में मशगूल हो गई.

 

कथाकार परिचय

दलजीत कौर

2571/40-सी

चंडीगढ़

9463743144

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